Monday, September 21, 2009

संवेदनात्‍मक बारीकियों की कहानियां

'कहीं जरा सा' की भूमिका में भगवान अटलानी -

अनेक वर्षों से लिखते आ रहे किसी युवा लेखक की धीमी रफ्तार से किन्‍तु निरन्‍तर जारी सृजनशीलता जब संग्रह के रूप में पाठकों के सामने आती है तो एक नये मकान के खुले खिड़की दरवाजों में से गुजरती हवा के ताजे झोंका का अहसास होता है । बिम्‍बों, संरचनाओं, विधान व पक्षधरता के जो दायरे स्‍थापित लेखक अपने चारों ओर बनाते हैं, सुधि पाठक उनसे परिचित होता है । सृजन के आयाम से परिचय के कारण कई बार ऐसे लेखक की रचना में जो नहीं होता, उसे भी निरूपित करने की चेष्‍टा होती है । किन्‍तु पहली बार संग्रह के माध्‍यम से सामने आने वाले लेखक को उसकी रचनाओं की पृष्‍ठभूमि में ज्‍यों का त्‍यों देखने, समझने, आंकने तथा विश्‍लेषित करने की सुविधा होती है ।
मुकेश पोपली के पहले कहानी संग्रह 'कहीं जरा सा...' की कहानियां पढ़कर संवेदनात्‍मक बारीकियों के अनेक चित्र सामने आते हैं । इन कहानियों में है रुतबा हासिल व्‍यक्ति और आम आदमी के साथ समान विपरीत स्थितियों में दृष्टिगोचर होता भिन्‍न व्‍यवहार (अपील), आतंकवादी गतिविधियों के अनछुये पहलू (कहीं जरा सा...), अहम् को छोड़कर पत्‍नी के साथ रिश्‍ते सुधारने का संकल्‍प (डुप्‍लीकेट चाबी), चारित्रिक फिसलन के कगार से लौटने की प्रक्रिया (बैसाखी), बैंक से लिये गय कर्ज की अदायगी न करने वाले गरीब ग्रामीण की विवशताओं का हृदयस्‍पर्शी आकलन (बनता हुआ पुल), संतानहीनता के आधार पर पुनर्विवाह करने के आकांक्षी पति से संवाद की तैयारी (पेपरवेट), मृत पति के स्‍वप्‍नों को साकार करते हुए प्रकृति से सामीप्‍य बनाये रखने की चेष्‍टा (मौन-संगीत), अम्‍मा के बिना बताये घर से चले जाने के बाद सामाजिक ग्रन्थियों को उघाड़ता रोचक विवरण (हसन मियां की अम्‍मा), वर्षों तलाकशुदा जीवन व्‍यतीत करने के बाद पलटकर लेखा जोखा करने के उपरान्‍त फिर साथ जीने का निर्णय (तलाक के तेरह साल बाद), प्रेमिका और उससे जन्‍मे अवैध पुत्र को दिये गये संरक्षण की सटीक बुनावट (सोया हुआ शैतान) तथा आतंकवाद जनित दहशत में गुजरते जीवन की आवेगमय झलक (खौफ) ।
इस संग्रह में शामिल सभी कहानियों में जाना पहचाना परिवेश है किन्‍तु कहानियों में जिन बिन्‍दुओं को रेखांकित किया गया है वे सामान्‍य से हटकर हैं । अपने-परायों के दु:खों के एकाकार होने की अन्‍तर्धारा सभी कहानियों में निरन्‍तर प्रवाहित प्रतीत होती है । मानवीय सरोकारों के साथ पीड़ायें बांटने की कोशिश करती इस संग्रह में शामिल कहानियां बैसाखी, हसन मियां की अम्‍मा, तलाक के तेरह साल बाद, सोया हुआ शैतान और खौफ लेखकीय सम्‍भावनाओं की प्रबल संकेतक हैं । मुझे विश्‍वास है कि मुकेश पोपली के प्रथम कहानी संग्रह 'कहीं जरा सा...' का हिन्‍दी जगत में भरपूर स्‍वागत किया जायेगा ।

1 comment:

  1. कहीं जरा सा....के लिए बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

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